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दिये ही दिये उम्र भर हैं जलाए / उर्मिल सत्यभूषण

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दिये ही दिये उम्र भर हैं जलाए
उजाले न फिर भी कभी पास आए

जले आस में ये दो नयना निरंतर
अंधेरे निराशा के मिटने न पाए

यहाँ कौन आए अगर-धूप लेकर
गुफाओं में दिल की जो आकर धुखाए

खुशी फुलझड़ी और हंसी के पटाखे
दिवाली पे यारो हमीं ने छुड़ाए

रहे देवता हमसे रूठे के रूठे
बड़े भाव से गीत पूजा के गाए

पलों दो पलों को चलो जी लें हंस कर
ये पर्वो का मौसम है रीता न जाए

जली उम्र भर मोमबत्ती सी उर्मिल
दिवस, मास सालों पिघलते गंवाए।