भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिले-शिकस्ता को फिर कोई ख्वाब मत देना / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिले-शिकस्ता को फिर कोई ख्वाब मत देना
पुराने घर को नई आबो-ताब मत देना

सवाल हम ने किया है बड़ी उम्मीदों से
जवाब ठीक ही देना ख़राब मत देना

ग़मों के बोझ तले हम न दब के रह जायें
जो ग़म ही देना है तो बे-हिसाब मत देना

कहीं न टूट के रह जायें हम दुखों के सबब
अब और दुख दिले-नाकामयाब मत देना

बहक न जाये वो कम-ज़र्फ़ पी के थोड़ी सी
तुम उस के हाथ में जामे-शराब मत देना

वो पेड़ पौधे कि लगते हैं जिन को काँटे ही
तुम ऐसे पेड़ों को भूले से आब4 मत देना

पढ़े लिखों से हम अनपढ़ कोई बुरे भी नहीं
ख़ुदा के वास्ते हम को किताब मत देना

हर इक सवाल का होता जवाब भी है एक
हर इक सवाल के सौ-सौ जवाब मत देना