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दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न / तारा सिंह

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दिले बेताब को जुल्फ़ों में उलझाया न करो
यूँ इश्क की आग को सुलगाया न करो

आता नहीं पलट के जमाना शबाब का, जोशे-
इश्क में वादा-ए-मर्द को आजमाया न करो

खुद अपना फ़ैसला, कभी-कभी घातक है होता
तुम राह में दोपट्टे को सीने से सरकाया न करो

लहर उठने के पहले सौंप दो सफ़ीना-ए-हयात
मेरे हाथों में, तुम दिल पे अब्रे-गम लाया न करो

हाले दिल बेताब जो कहा जाये तो हमसे कहो
किसी गैर से राजे-दिल बताया न करो