दिलों के साथ रहेगी दिलों की तन्हाई / फ़ाज़िल जमीली
दिलों के साथ रहेगी दिलों की तन्हाई ।
मिलेगी हम को फ़कत महफ़िलों की तन्हाई ।
तमाम उम्र चले फिर भी न तमाम रहे
कि दरमियाँ में थी फ़ासलों की तन्हाई ।
पड़ोसियों से मिलोगे तो जान जाओगे
समन्दरों-सी नहीं साहिलों की तन्हाई ।
जो उस बदन पर नुमायाँ हैं और पिन्हाँ हैं
कोई नहीं जान सका उन तिलों की तन्हाई ।
दिलों के गीत मशीनों के शोर में गुम हैं
फ़िज़ा में गूँज रही है मिलों की तन्हाई ।
मैं आप अपनी उदासी के साथ चलता रहा
मेरा सफ़र था फ़क़त गाफ़िलों की तन्हाई ।
बता रही हैं मेरे हाथ की लकीरें भी
मेरे नसीब में थी मंज़िलों की तन्हाई ।
(2)
किसी की आँख में है काजलों की तन्हाई ।
सुलग रही है कहीं आँचलों की तन्हाई ।
मैं ख़ुशख़याल उसे बरखा की रुत समझ बैठा
बरस रही थीं कहीं बादलों की तन्हाई ।
हमारे शहर की रौनक नहीं वो पहले-सी
कि आ बसी है यहाँ जंगलों की तन्हाई ।
यहीं पड़ी हुई मिल जाएगी कहीं न कहीं
किसी के साथ में गुज़रें पलों की तन्हाई ।
मैं उसके खेमा-ए-ख़ुश ख़्वाब से निकल आया
बिछी हुई थी वहाँ मखमलों की तन्हाई ।