भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिलों से गर्दे-ज़हालत को साफ करता है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 दिलों से गर्दे-जहालत को साफ़ करता है
गुज़रता वक्त़ नये इन्किशाफ़ करता है

ये कहकशां, ये सितारे, ये चांद ये सूरज
ये कुल निज़ाम तुम्हारा तवाफ़ करता है

ख़ता हुई है तो फिर उस के दर पे सिज्दा कर
कि वो रहीम ख़तायें मुआफ़ करता है

तेरे मकान के बेलों लदे दरीचे पर
ये किस की रूह का ताइर तवाफ़ करता है

हो उस के ज़िह्न में शायद ख़याले-नौ कोई
हर एक शख्स़ से वो इख्त़िलाफ़ करता है

ख़मोश रह के करे है लहू लहू दिल को
करे वो बात तो दिल में शिगाफ़ करता है

कहें तो किस को कहें बेवफ़ा कि जब 'रहबर`
लहू लहू से यहां इन्हिराफ़ करता है