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दिलों से दिलों के बनाने हैं रिश्ते / रविकांत अनमोल

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दिलों से दिलों के बनाने हैं रिश्ते
हमें धड़कनों में सजाने हैं रिश्ते

महब्बत की सरगम के मीठे सुरों में
ग़ज़ल की तरह गुनगुनाने हैं रिश्ते

हैं मासूम कलियों की मुस्कान जैसे
गुलों से सुहाने-सुहाने हैं रिश्ते

ये मानो न मानो कि हमने हमेशा
दिलो-जान से बढ़ के माने हैं रिश्ते

महब्बत, वफ़ा, दोस्ती, ग़मगुसारी<ref>हमदर्दी</ref>
हमें ऐसे-ऐसे निभाने हैं रिश्ते

तुम्हें क्या बताएं ज़माना बुरा है
हमें नज़रे-बद<ref>बुरी नज़र</ref> से बचाने हैं रिश्ते

ये तकरार<ref>झगड़ा</ref> छोड़ो, चलो मिल के बैठें
तुम्हारे हमारे पुराने हैं रिश्ते
                               

शब्दार्थ
<references/>