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दिलो-एहसास से पथरा रहा हूँ / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
दिलो-एहसास से पथरा रहा हूँ।
मैं ख़ुद में दफ़्न होता जा रहा हूँ॥
मुझे तुझको जो समझानी थी बातें
मैं अपने दिल को ही समझा रहा हूँ॥
मेरे रिश्ते बड़े ही बेसुरे हैं
मैं नौसिखिये के जैसे गा रहा हूँ॥
लगे है साँस भी लेना कि जैसे
ज़रूरी काम है निपटा रहा हूँ॥
तेरा जाना मेरा न रोक पाना
यक़ीनन आज तक पछता रहा हूँ॥
बना डाला मुझे प्यासों ने पत्थर
मुझे है याद मैं दरिया रहा हूँ॥
ज़माने कुछ गिला तुझसे नहीं है
बस अपने आप से उकता रहा हूँ॥
कहा सुब्ह से ये बुझते दिये ने
मैं "सूरज" बनके वापस आ रहा हूँ॥