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दिल्ली की दशा / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

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प्रदूषण की मार झेल रहा है दिल्ली,
देख मानव तेरा उड़ा रहा है खिल्ली।
जाग -जाग अब भी मानव तू मूर्ख !
क्यों करते स्याह,गाल गुलाबी सूर्ख।

अरे नहीं रंगीन कोई शाम दिखते,
न कोई पर्यावरण बचाना सिखते।
फ़िज़ा इतनी प्रदूषित है शहर की,
कि छटा मैली हो गई है कमर की।

हर ओर कोहरे ने कैसा डेरा डाला,
फेफड़े में जा रही हवा ज़हर वाला।
ऊंची -ऊंची इमारतों ने हवा रोकी,
फिर आये किधर से हवा -झोंकी।

पर्यावरण की किसे अब फ़िक्र है,
सरेआम बस लोग करता जिक्र है।
सीने में तो ज़हर सी जलन है छाई,
फैली बीमारियाँ दिल्ली में है भाई।