दिल्ली डूबी मक्खन में / डी. एम. मिश्र
चल बनजारे यहाँ से चल
सत्ता के ये मेले हैं
किसिम -किसिम के खेले हैं
कमल कहीं है कीचड़ में
कहीं है झंडा - पोस्टर में
जोगी नंगी लिये सरंगी
राजा गेरुआ- बस्तर में
जनता रौरव यात्रा में
राजा गौरव यात्रा में
खलिहान खेत रूखे -सूखे
दिल्ली डूबी मक्खन में
उल्टा डिब्बा
पड़ा बानगी
देखैं लोगे ढक्कन में
घपला और घोटाला करके
पहरेदारी सीख लिया
बेशर्र्मी की कालिख पोते
इज़्ज़तदारी ओढ़ लिया
घुसपैठ का जिम्मेदार कौन
जिसने ‘बार्डर’ को सील किया
कट गये हज़ारों वीर
मगर नेताओं ने
‘गुडफील’ किया
उधर पड़ा वीरों का लहू
इधर हलक में दारू
चमक उठी टीवी स्क्रीन
गरजे बादल
भाषण की बौछारें
कोने- कोने में
असेंम्बली के फंदे में
पंजे के कसे शिकंजे में
हाथी, साइकिल के झगड़े में
हँसिया, बाली के मूठे में
टूटे हुए हथौडे में
हर दल में - हर खेमे में
क्रिकेट हो रहा
और अन्त में
अरमानों की हवा निकाल दी
कैप्टन ने जो सट्टे में
झोंक दिया सब भट्ठे में