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दिल्ली थी कि दूर थी / नील कमल
Kavita Kosh से
दिल्ली उतनी दूर नहीं थी
बात इतनी थी
कि एक फ़कीर गा रहा था ,
‘दूर अस्त’
रात उतनी लम्बी नहीं थी
बात इतनी थी
कि हमें भरोसा नहीं था,
सुबह आएगी
अँधेरा उतना घना नहीं था
बात इतनी थी
कि लोग खड़े थे एक जादुई मोड़ पर,
जहाँ सड़क की हज़ार-हज़ार बाँहें
हज़ार-हज़ार दिशाओं में फूटती हैं
हर बाँह का इशारा था
दिल्ली की ओर,
लुटेरों के लिए
कोई दिल्ली दूर नहीं होती
दोस्तो ! यह घरों को लौटने का वक़्त था
और हम थे कि सुबह के इंतज़ार में थे,
दिल्ली थी कि दूर थी ।