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दिल्ली में बलात्कार / शहंशाह आलम

आश्विन-कार्तिक के इस महीने में
पूरे उत्साह से मनाया जा रहा था
अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव भारी
उप प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन के बाद
उप प्रधानमंत्री लौट चुके थे
अभिनेत्रियों के बीच से अनायास
ढेर सारी उत्तेजनाएं
ढेर सारी तालियां
ढेर सारी प्रसन्नताएं बटोरकर

इधर दिल्ली की चमचमाती सड़क पर
चलती गाड़ी के भीतर किया जा रहा था
एक विदेशी स्त्री का बलात्कार

स्त्री की ‘आह्’ और ‘बस्स्’ बन्द थी गाड़ी के अंदर
यह सब सिनेमा के दृश्यों जैसा घटित हुआ था

ठीक इसी क्षण देश की राजधानी के दूसरे इलाक़े में
एक दूसरी स्त्री के साथ भी किया गया बलात्कार
बर्बरता की हद को मात देते हुए

यह सब घटते समय घड़ी में बहुत अधिक
बजा नहीं था आदमियों के हाथों की
आसपास ज़िंदगी की भागमभाग थी
एक समूची दुनिया एक समूची याददाश्त थी
निर्माता-निर्देशक के पीछे भागती हुई लड़कियां थीं
विपत्तियों में भी मुस्कुराते लोग-बाग थे

हमें मालूम है, दिल्ली शब्दों के लिए नहीं
विज्ञापनों के लिए जानी जाती है
हमें मालूम है, दिल्ली संवाद के लिए नहीं
मर्सिये के लिए जानी जाती है
दिल्ली जानी जाती है
हिरासती मौतों के लिए
एनकाउंटर के लिए दुखों के लिए
रोज़ ख़त्म होते अच्छे दिनों के लिए
पिता के इलाज के लिए

यह सब लिखे जाने से पूर्व
विस्मय तब अधिक होता दिल्ली के बारे में सोचकर
जब उप प्रधानमंत्री का सावधानी से दिया गया बयान
आता लगातार राष्ट्रीय चैनल पर इन घटनाओं को लेकर
उनके बयान में स्त्रियों के प्रति
सिर्फ़ अभिनय होता था शब्दों वाक्यों से भरा हुआ
असल चिंताएं उनकी अपने भक्तों को लेकर होती थीं
वे जानते थे उनकी अमरता अथवा धर्मनिरपेक्षता
स्त्रियों के स्त्रीत्व के बचाव में नहीं
धर्म के पाखंड को जीवन का अंग बनाए रखने में थी

और जब कविहृदय प्रधानमंत्री से पूछा जाता इस बारे में
कोई उत्तर नहीं होता था ऐसी त्रासद घटनाओं को लेकर
प्रधानमंत्री कार्यालय के पास
बस उप प्रधानमंत्री जब हिन्दुस्तान को
‘हिन्दूस्थान’ घोषित कर रहे होते थे
लोकतंत्र को हरा रहे होते थे प्रधानमंत्री ठठाते थे
मानव संसाधन मंत्री की हंसी में अपनी हंसी मिलाकर

प्रधानमंत्री जनता की नासमझी पर इनकी खीझ और थकान पर
अथवा अपनी देश-विदेश की यात्राओं की
बूढ़ी स्मृतियों को जी रहे होते थे पूरी बेशर्मी से
या बेस्ट बेकरी कांड को याद कर-करके
परदे के पीछे की फुसफुसाहट को समर्थ-सार्थक
करने में लगे होते थे अपनी कार्यकुशलता को बखानते हुए
या मुस्कुरा रहे होते थे एक क्रूर मुस्कुराहट
अपने ही त्रिशूलधारी साथियों के शर्मनाक दावों पर

वे नदी को उसकी जलधाराओं को
मोड़ना चाहते थे पूरी बेशर्मी से
उनके लिए यही सब कुछ था यही उपक्रम था
पुनर्जीवन का यही मार्ग था सही मार्ग

दिल्ली कितनी दूर थी हमारे क़स्बे से
वहां कितना कुछ घट रहा था अप्रिय इन दिनों
बाबा फिर भी जाना चाहते थे वहीं
दिल्ली बाबा के लिए देवलोक जैसी थी
उनके स्वप्नों का देवलोक
वहीं हो सकता था बाबा की आनुवांशिक बीमारी का इलाज
अनजान थे बाबा कितने अनजान थे
समय के इस धार्मिक-सांस्कृतिक परिवर्तन से
जबकि दिल्ली स्वयं ग्रस्त थी असाध्य रोगों से

दिल्ली की आत्मकथा जब लिखी जाएगी
दिल्ली की नोटबुक जब भरी जाएगी
अथवा दिल्ली की कथा-कविता
जब दर्ज़ की जाएगी डायरी में
तो ऐसे-ऐसे ही कौतुक श्रेष्ठ
ऐसे-ऐसे ही विस्मय श्रेष्ठ
ऐसी-ऐसी ही कथाएं-कविताएं मिलेंगी असंख्य
और मिलेंगी हारी हुई स्त्रियों की बेचैनियां

दिल्ली में जब बलात्कार होते
तो ख़ुद पुलिस वाले करते यह कुकृत्य
या बलात्कार के वक्त वे रहते तैनात
घटना-स्थल पर पहले से

इस महानगर के शराबघर में जब होती थी रात
ऊँघती-थकती थीं जीन्स पहनी लड़कियां
हारता था जब संघर्ष स्त्रियों का
वहां घटित होता था यही सब कुछ

धर्मतंत्र को मज़बूत करते
प्रधानमंत्री उप प्रधानमंत्री सरसंघचालक
धन्य थे महान थे महानतम थे
बलात्कार की घटनाओं के बीच
वे भेजते थे जुलूस
अयोध्या की तरफ़ गुजरात की तरफ़

वे हाथ बढ़ाकर छीन लेते थे
हमारा संघर्ष हमारी मेहनत हमारा सुकून
हमारी सहृदयता हमारी सदिच्छाएं
पूरी क्रूरता से

दिल्ली में थी उफ़ दिल्ली में थी हताशा
दिल्ली में थी वितृष्णा
दिल्ली में थे सिर्फ शत्रु
दिल्ली में था सारा कुछ पुरातन-पुराना
नई थीं बस महामात्य की कविताएं
और उनके पाठकों के बीच बलात्कार-कविताएं
नयी-नवीनतम थीं ताज़ातरीन थीं

दिल्ली में उन स्त्रियों की आत्माएं भटकती थीं
जो बलात्कार का शिकार हुईं और मारी गईं

फिर जो फिल्मों में दिखाया जाएगा
सेंसर बोर्ड की अनुमति से
वही तो दोहराया जाएगा फिल्मोत्सवों के बीच

आपकी दिल्ली के बारे में
बस इतना ही कहूंगा महामात्य जी कि
दिल्ली को देखें
और एक मरे हुए कीड़े को देखें
तो कोई अंतर नहीं दिखेगा आपको
इसलिए कि दिल्ली में हम रोज़ लौटते थे
पागल और आदिकालीन समयों में।