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दिल, दिलबर, दिलदार की भाषा / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
हिंदी हो जन - जन की भाषा
तेरी मेरी यह अभिलाषा
प्यार की भाषा यार की भाषा
दिल, दिलबर, दिलदार की भाषा
इस भाषा को फैलाएगे
दूर दूर तक पहुँचाएँगे
इसकी सीमा उत्तर -दक्षिण
इसकी बाँहें पूर्व् - पश्चिम
भेद से, भय से ऊपर है यह
आर्यवर्त का सूत्र है यह
अक्षर अक्षर अमृत प्याला
शब्दों का है रूप निराला
सागर सागर जैसे पानी
आकाशों में इसकी वाणी
संत कबीर के दोहों वाली
जायसी के शब्दों की पाली
सूरदास का दर्पण है यह
मीरा का भी चिनतन है यह
आओ इसको दिल से लगाकर
नमन करेंगे शीष झुकाकर।