भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल एक मंदिर / रुक जा रात ठहर जा रे चंदा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: शैलेन्द्र                 

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा, बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में, अरमानों का मेला
रुक जा रात ...

पहले मिलन की यादें लेकर, आई है ये रात सुहानी
दोहराते हैं चांद सितारे, मेरी तुम्हारी प्रेम कहानी
रुक जा रात ...

कल का डरना काल की चिंता, दो तन है मन एक हमारे
जीवन सीमा के आगे भी, आऊंगी मैं संग तुम्हारे
रुक जा रात ...