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दिल का दुखड़ा किसे सुनाएँ / चेतन दुबे 'अनिल'

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दिल का दुखड़ा किसे सुनाएँ?

दुनिया की इस भागदौड़ में
सारा जीवन बीत गया है,
चिन्ता जला रही है पल - पल
आँसू का घट रीत गया है।
समझ नहीं आता कि राग यह
अब हम किस ढपली पर गाएँ?
दिल का दुखड़ा किसे सुनाएँ?

जो भी मीत मिले सबके सब
अपने ही स्वारथ में अंधे ,
अपनी ही कह सके सिर्फ वे
रहे सभी मतलब के बंदे।
समझ नहीं आता दुनिया में
किसको मन का मीत बनाएँ?
दिल का दुखड़ा किसे सुनाएँ?

मुझको पत्थर मिले उसी से
जिसको मैंने फूल दिए हैं ,
जिसको मन का किया समर्पण
सदा उसी ने शूल दिए हैं।
समझ नहीं आता अपना मन
इस जग में कैसे बहलाएँ?
दिल का दुखड़ा किसे सुनाएँ?