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दिल का ही ज़ख़्म हरा है अब तक / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
दिल का ही ज़ख़्म हरा है अब तक
ये भरेगा न भरा है अब तक,
जिसको बरसों सहेजकर रक्खा
ख़्वाब आँखों में छुपा है अब तक,
हादसा ऐसा मेरे साथ हुआ
हर कोई शख़्स डरा है अब तक,
कल बदल जाए कह नहीं सकता
आदमी वो तो खरा है अब तक,
साधु-संतों के करम से यारों
पाक अपनी ये धरा है अब तक।