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दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए / 'हफ़ीज़' बनारसी
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दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए
दौलत-ए-इश्क़ नहीं बाँध के रखने के लिए
इस ख़जाने को जहाँ तक हो लुटाते रहिए
ज़िंदगी भी किसी मेहबूब से कुछ कम तो नहीं
प्यार है उस से तो फिर नाज़ उठाते रहिए
ज़िंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए
बोलते रहिए ज़रा हँसते हँसाते रहिए
रूठना भी है हसीनों की अदा में शामिल
आप का काम मनाना है मनाते रहिए
फूल बिखराता हुआ मैं तो चला जाऊँगा
आप काँटे मिरी राहों में बिछाते रहिए
बे-वफ़ाई का ज़माना है मगर आप ‘हफीज़’
नग़मा-ए-मेहर-ए-वफा सब को सुनाते रहिए