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दिल की ज़मीं में आँसुओं के बीज बो गया / ज़ाहिद अबरोल

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दिल की ज़मीं में आंसुओं के बीज बो गया
इक शख़्स पास आ के बहुत दूर हो गया

कितना बड़ा मज़ाक़ किया मेरे बख़्त ने
मुझ को जगा के आप कहीं जा के सो गया

सांसों की पटरियों पे चली ज़िन्दगी की रेल
उम्मीद ही का रख़्त-ए-सफ़र था जो खो गया

इस ज़ख़्म-ए-दिल से दर्द उठा वो कि कुछ न पूछ
तेरा ख़याल आ के जो निश्तर चुभो गया

“ज़ाहिद” ख़ुदा का हो कि किसी आशना का घर
इज़्ज़त मिली न उसको तहीदस्त जो गया

शब्दार्थ
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