भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल की तस्कीं का आसरा न हुआ / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
दिल की तस्कीं का आसरा न हुआ
सितम उन का करम-नुमा न हुआ
मेरे नालों से हिल गये अफ्लाक
तेरे दिल पर असर ज़रा न हुआ
जख़्म वो क्या जो भर गया आखिर
दर्द वो क्या जो ला-दवा न हुआ
टीस दिल की कभी फिरो न हुई
हाथ दिल से कभी जुदा न हुआ।
तेग़ जब इम्तिहान की उट्ठी
कोई आगे मेरे सिवा न हुआ
तू न चाहे तो और बात है ये
तूने चाहा जो किसी से वा न हुआ
तार टूटा तिरे तग़ाफ़ुल का
मिट गया मैं तो कुछ बुरा न हुआ
देर उस ने भी की तो आने में
सब्र तुझ से भी ऐ 'वफ़ा' न हुआ।