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दिल की सब तल्ख़ियां बयान में रख / रविकांत अनमोल

दिल की सब तल्ख़ियां<ref>चुभन, नाराज़गी</ref> बयान में रख
लफ़्ज़ शीरीं<ref>मधुर</ref> मगर ज़बान में रख

अपनी मिट्टी से प्यार है जिनको
उनका रुतबा तू आसमान में रख

मुझको आगे बहुत निकलना है
ऐ ख़ुदा मुझको इम्तिहान में रख

जिनसे हाकिम की आँख खुल जाए
ऐसे कुछ सुर भी अपनी तान में रख

शायरी का जो शा़क है तुझको
सोच अपनी सदा उड़ान में रख

कल जिन्हें सायबान बनना है
आज उनको तू सायबान में रख

जिनसे ताज़ा हवा भी आती हो
ऐसी कुछ खिड़कियाँ मकान में रख


शब्दार्थ
<references/>