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दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है / वली दक्कनी

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दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है
चश्म का काम अश्क-बारी है

शब-ए-फ़ुर्क़त में मोनिस ओ हम-दम
बे-क़रारों कूँ आह ओ ज़ारी है

ऐ अज़ीज़ाँ मुझे नहीं बर्दाश्त
संग-दिल का फ़िराक़ भारी है

फ़ैज़ सूँ तुझ फ़िराक़ के साजन
चश्म-ए-गिर्यां का काम जारी है

फ़ौक़ियत ले गया हूँ बुलबुल सूँ
गरचे मंसब में दो-हज़ारी है

इश्क़-बाज़ों के हक़ में क़ातिल की
हर निगह ख़ंजर ओ कटारी है

आतिश-ए-हिज्र-ए-लाला-रू सूँ 'वली'
दाग़ सीने में याद-गारी है