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दिल के अरमान दिल को छोड़ गए / अख़्तर अंसारी

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दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
आह मुँह इस जहाँ से मोड़ गए

वो उमंगें नहीं तबीअत में
क्या कहें जी को सदमे तोड़ गए

बाद-ए-बास के मुसलसल दौर
साग़र-ए-आरज़ू फोड़ गए

मिट गए वो नज़्ज़ारा-हा-ए-जमील
लेकिन आँखों में अक्स छोड़ गए

हम थे इशरत की गहरी नींदें थीं
आए आलाम और झिंझोड़ गए