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दिल के ज़ख़्मों की तुम दवा करना / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

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दिल के ज़ख़्मों की तुम दवा करना
हक मुहब्बत का कुछ अदा करना

रब्त तुझ से इसी बहाने सही
मुझ को दुश्मन ही कह दिया करना

आने वाले की फ़िक्र लाज़िम है
जो गया उस का ज़िक्र क्या करना

हाले-दिल पूछने से क्या हासिल
हो सके तो कभी वफ़ा करना

रूठ जाए वो उसकी मर्ज़ी है
फ़र्ज़ मेरा मुझे अदा करना

दूरियाँ अब सही नहीं जाती
कोई मिलने का रास्ता करना

इक यही आरज़ू है अब तो 'यक़ीन'
कुछ मुहब्बत में ग़म अता करना