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दिल के लिए वो एक नज़र तीर बन गई / ज़ाहिद अबरोल

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दिल के लिए वो एक नज़र तीर बन गई
मेरे लिए यह ज़िन्दगी जं़जीर बन गई

अदना सा इक कमाल था मेरे जुनून का
वो लबकुशा हुए मिरी तक़दीर बन गई

आए हैं पूछने को वो बीमार-ए-ग़म का हाल
हर एक ग़म की मौत जब इक्सीर बन गई

दिल पर कुछ इस मिज़ाज से उभरे हैं नक़्श-ए-ग़म
बेताबी-ए-हयात की तस्वीर बन गई

“ज़ाहिद” हज़ार मंज़िलें उस पर निसार हैं
वो इक सदा जो पांव की ज़ंजीर बन गई

शब्दार्थ
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