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दिल को हम कब उदास करते हैं / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
दिल को हम कब उदास करते हैं
आज भी उनकी आस करते हैं
हमको ढूँढ़ो नहीं मकानों में
हम दिलों में निवास करते हैं
पहले खुद ही उदास रहते थे
अब वो सबको उदास करते हैं
चढ़के काँधों पे हो गए ऊँचे
इस तरह भी विकास करते हैं
इत्तिफ़ाकन निगाह उट्ठी थी
लोग क्या-क्या क़यास करत हैं