दिल को हरेक लम्हा तुम्हारी कमी खली 
तुमसे बिछड़ के यार बहुत ज़िन्दगी खली 
पानी की मुझको ऐसी तलब अब तलक न थी 
दरिया को देखते ही अजब तिश्नगी खली 
उसके बग़ैर दिल का ये आलम है दोस्तो 
जो शय सुकून देती रही है वही खली
अफ़सोस घूम फिर के वहीं फिर से आ गए 
इन रहबरों की हमको बहुत रहबरी खली 
रंजो-अलम का तू ही बता क्या गिला करूँ
कितनी ही बार ग़म से भी ज़्यादा ख़ुशी खली
सच बोलने की मुझको ये आदत ख़राब है 
अक्सर ही दोस्तों को मेरी दोस्ती खली 
आँखों को पड़ चुकी थीं अँधेरों की आदतें 
कुछ रोज़ ऐ ‘अकेला’ बहुत रोशनी खली