दिल चीज़ क्या है चाहिए तो जान लीजिए / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
दिल चीज़ क्या है चाहिए तो जान लीजिए
पर बात को भी मेरी ज़रा मान लीजिए
मरिए तड़प तड़प के दिला क्या ज़रूर है
सर पर किसी की तेग़ का एहसान लीजिए
आता है जी में चादर-ए-अब्र-ए-बहार को
ऐसी हवा में सर पे ज़रा तान लीजिए
मैं भी तो दोस्त-द़ार हूँ मेरी जाँ
मेरे भी हाथ से तो कभू पान लीजिए
कीजिए हम को भी ऐ दिल रवा नहीं
यूँ आप ही आप लज़्ज़त-ए-पैकान लीजिए
इस अपनी तंग चोली पे टुक रहम कीजिए जान
ख़मियाज़ा इस तरह से न हर आन लीजिए
गर क़ग्र-ए-कुश्तगाँ पे तुम आए हो तो मियाँ
अपने शहीद-ए-नाज़ को पहचान लीजिए
बोसे का जो तुम्हारे गुनह-गार हो मियाँ
लाज़िम है उस से बोसा ही तावान लीजिए
वहशत के दिन फिर आए है इस नौ-बहार में
ऐ चाक-ए-जैब फिर रह-ए-दामान लीजिए
मुश्किल नहीं है यार का फिर मिलना ‘मुसहफ़ी’
मरने की अपने जी अगर ठान लीजिए