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दिल टूट गया कैसे अहसास नहीं बाक़ी / ईश्वरदत्त अंजुम
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दिल टूट गया कैसे अहसास नहीं बाक़ी
यादों के सिवा कुछ भी अब पास नहीं बाकी
शीशों के बिखरनों की आवाज़ सी आयी थी
अब इस के सिवा कुछ भी एहसास नहीं बाक़ी
तहज़ीबे-कुहन अपना अनमोल असासा थी
अब पास हमारे वो अलमास नहीं बाक़ी
वो कौन से इंसां है जो ग़म से नहीं घायल
दिल कौन सा है जिसमें अब यास नहीं बाक़ी
इस ढंग से वो बिछुड़ा अब मुड़कर भी नहीं देखा
अब लौट के वो आये ये आस नहीं बाक़ी।
गुज़रे हुए लम्हे ही इस दिल का सहारा थे
जो अक्स है यादों का अब पास नहीं बाक़ी
गुष्ण के उजड़ने का क्या माजरा पूछो हो
फूलों में भी ऐ 'अंजुम' अब आस नहीं बाक़ी।