भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल तड़पता है आप ही के लिए / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल तड़पता है आप ही के लिए
जैसे परवाना रौशनी के लिए

ग़म कहां हर किसी की किस्मत में
ये खुशी है किसी किसी के लिए

तूने देखा जिसे नज़र भर के
हो गया वक़्फ़ गुमरही के लिए

एक दो जाम कर अता साक़ी
दर्द मंदों को ज़िन्दगी के लिए

अपना इरफान हो गया मुझ को
शुक्रिया तेरा बेरुखी के लिए

कौन सा ये मक़ामे-उल्फ़त है
ग़म ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिए

होशयार ऐ फ़रेब खुर्दा दिल
फिर वो आये हैं दोस्ती के लिए

शौक़ से मश्के जौर जारी रख
जी रहा हूँ तेरी खुशी के लिए

बढ़ गया दर्द इस क़दर अंजान
अब तो जीता हूँ दर्द ही के लिए।