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दिल तेरे इंतज़ार में कल रात-भर जला / निश्तर ख़ानक़ाही
Kavita Kosh से
दिल तेरे इंतज़ार में कल रात- भर जला
नर्गिस का फूल पिछले पहर तक खिला रहा
पहले तो अपने आपसे बेजारियाँ(१)बढ़ी
फिर यों हुआ कि तुझसे भी दिल ऊबने लगा
अच्छा हुआ कि सारे खिलौने बिखर गए
गुंचे ,सुबू ,(२)शराब ,शफ़क ,चाँदनी सबा(३)
सहरा की वुसअतों(४)में न जब आफ़ियत मिली
मैं शहर-शहर दिल का सकूँ ढूंढ़ता फिरा
जागा हुआ था नींद की मदहोशियों में हुस्न
देखा-सकूते-शब(५)में बदन बोलता हुआ
पहले भी किसने प्यार के वादे वफ़ा किए
पहले भी कोई प्यार में सच बोलता न था
दफ़्तर से थक के लौट रहा था कि घर के पास
पहुँचा तो तेरे प्यार का दिन डूबने लगा
शब्दार्थ --
१- उकताहट
२- मदिरा- पात्र
३-समीर
४-फैलाव
५-रात का सन्नाटा