भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल देलों पत्थरोॅ केॅ, प्यार देलां पत्थरोॅ केॅ / अनिल शंकर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल देलों पत्थरोॅ केॅ, प्यार देलां पत्थरोॅ केॅ
अनजाने बाँहोॅ में शृंगार देलां पत्थरोॅ केॅ।
आय देलां पत्थरोॅ केॅ, काल देलां पत्थरोॅ केॅ
आगू पीछू जिनगी के सार देलां पत्थरोॅ केॅ।
इहलोक हारी देलौ, परलोक बारी देलौ
धरम ईमान भी बनाय लेलोॅ पत्थरोॅ केॅ।
तैयो नै निर्मोही घुमियो केॅ ताकै शमा
जिनगी केॅ भोगोॅ ना चढ़ाय देलौ पत्थरोॅ केॅ॥