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दिल ने आशाओं के दो बोल सुनाये होंगे / शैलेश ज़ैदी

दिल ने आशाओं के दो बोल सुनाये होंगे.
बस इसी बात पे आँसू निकल आए होंगे.

उसको भी मेरे ख़यालों ने सताया होगा,
उसने भी मेरी तरह खवाब सजाये होंगे.

चाह कर भी वो किसी लम्हा न तनहा होगा,
साथ जब मैं न रहूँगा मेरे साए होंगे.

वाबस्ता कोई शय नज़र आयी होगी,
जिसने सोये हुए एहसास जगाये होंगे.

मैंने जिनके लिए हंस-हंस के ग़मों को झेला,
क्या ख़बर थी कि वही लोग पराये होंगे.

शाम की तरह अगर सुब्ह भी धुंधली होगी,
हम उजालों की नयी शमएं जलाए होंगे.

सब्र की मेरे हदें देख के हैरत में हैं सब,
इतने दुःख तो न किसी ने भी उठाये होंगे.