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दिल ने ख़ुद को बहुत संभाला है / रविकांत अनमोल

दिल ने ख़ुद को बहुत संभाला है
फ़िर भी ये गाहे गाहे रोता है

हमको तेरी वफ़ाओं पर अब भी
क्या बताएं कि क्यों भरोसा है

जो भी सच है वो झूट हो जाए
दिल में अब भी यही तमन्ना है

तेरी फ़ितरत में कितना क्या क्या था
आज भी दिल इसी में उलझा है

किस में कितना क़ुसूर किस का था
ये सवाल आज तक भी उठता है

मेरे दिल के अंधेरे कोने में
अब भी ग़म का चिराग़ जलता है

सब हैं अपने नसीब की बातें
ग़म कहां दूसरों से मिलता है

मेरे दिल ने पुरानी बातों पे
जाने किस किस को कितना कोसा है