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दिल ने भी किस से लौ लगाई है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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दिल ने भी किस से लौ लगाई है
जिस का मस्लक ही बे-वफ़ाई है
गूंज उठी घाटियों में दर्द की लय
किस ने ये बांसुरी बजाई है
गुल रुख़ों से है दोस्ती मेरी
मह-जबीनों से आश्नाई है
आदमी पस्तियों में गुम है अभी
इस की गो चांद तक रसाई है
आज दीदार हो गया उन का
आज की बस यही कमाई है