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दिल परेशां नज़र है आवारा / 'हफ़ीज़' बनारसी
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दिल परेशां नज़र है आवारा
किसलिए हर बशर है आवारा
फूँक कर अपना घर मुहब्बत मे
ज़िन्दगी दरबदर है आवारा
किस की ज़ुल्फों को छू के आई है
क्यों नसीम-ए-सहर है आवारा
कुछ तुम्हारा शबाब है चंचल
कुछ हमारी नज़र है आवारा
चल रही है वह तुन्दो तेज़ हवा
जुल्फ़े-फ़िकरो-नज़र है आवारा
चांदनी है ज़मीन पर रक्सां
आसमां पर क़मर है आवारा
ज़हनो-दिल, आरजू ख़यालो-ख़्वाब
इन दिनों घर का घर है आवारा
क्या उसे रास्ते पर लाये कोई
फितरतन हर बशर है आवारा
कल चहकते थे अंदलीब जहाँ
अब वहाँ मुश्ते-पर है आवारा
कारवां से बिछड़ के इक राही
मिस्ले-गर्दे-सफ़र है आवारा
है तेरे इंतज़ार में मंज़िल
तू सरे-रहगुज़र है आवारा
क्या दिखायेगा राह-ए-रास्त हफ़ीज़
खुद अगर राहबर है आवारा