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दिल पर तेरा अधिकार प्रिये / उमेश कुमार राठी

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जाने अनजाने मान लिया
दिल पर तेरा अधिकार प्रिये
संयम ने तोड़े बाँध सभी
हम कर बैठे अभिसार प्रिये

तुम ही मृगनयनी चितवन हो
इस कोमल दिल की धड़कन हो
निश्चित खुशबू हो चंदन की
सच मानो जीवन दर्पण हो
रसवंती सुष्मित काया पर
सोहे पुष्पित शृंगार प्रिये

तुम ही सरिता की कलकल हो
हँसती गाती-सी हलचल हो
जब अलकें बिखरें आँचल पर
लगती बाला-सी चंचल हो
संजोग कहूँ या चमत्कार
हो मेरा पहिला प्यार प्रिये

पायल घुँघरू की प्रिय पुकार
करती निशदिन स्वर लय निसार
जब प्रीत हृदय की मीत बने
हर तार बने मधुमय सितार
नारी की पावन शुचिता से
परिवार लगे संसार प्रिये