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दिल पर सीकल भी नहीं गर्दे कदूरत ही नहीं / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
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दिल पर सीकल भी नहीं गर्दे कदूरत ही नहीं
एक सनम खाना है जिस में कोई मूरत ही नहीं
अदब आइना है और ऐसा अजब आईना
जिस में सीरत भी नज़र आती है सूरत ही नहीं
शायरी रास्ता साइंस को दिखाती है
फलसफा कहता है शायर की ज़रुरत ही नहीं
प्यार करने का शगुन आया नहीं पिछले बरस
और नए साल में भी ऐसी महूरत ही नहीं
आँखों ही आँखों में वो शेर कहा करते हैं
ऐ मुज़फ्फ़र उन्हें लफ्ज़ों की ज़रुरत ही नही