दिल बहलता है कहाँ अंजुमो-महताब से भी / फ़राज़
दिल बहलता है कहाँ अंजुमो-महताब <ref>चाँद-सितारों</ref>से भी
अब तो हम लोग गए दीद-ए-बेख़्वाब<ref>जागती आँखे</ref> से भी
रो पड़ा हूँ तो कोई बात ही ऐसी होगी
मैं कि वाक़िफ़<ref>परिचित</ref> था तिरे हिज्र <ref>विरह</ref>के आदाब<ref>ढंग,तरीक़े</ref> से भी
कुछ तो इस आँख का शेवा<ref>परिपाटी</ref> है ख़फ़ा<ref>नाराज़</ref> हो जाना
और कुछ भूल हुई है दिले-बेताब <ref>व्याकुल हृदय</ref>से भी
ऐ समन्दर की हवा तेरा करम भी मालूम
प्यास साहिल<ref>तट</ref> की तो बुझती नहीं सैलाब<ref>बाढ़</ref> से भी
कुछ तो उस हुस्न को जाने है ज़माना सारा
और कुछ बात चली है मिरे अहबाब <ref>मित्र</ref>से भी
दिल कभी ग़म के समुंदर का शनावर<ref>तैराक</ref> था ‘फ़राज़’
अब तो ख़ौफ़<ref>भय</ref> आता है इक मौज-ए-पायाब <ref>उथले पानी की लहर</ref>से भी