दिल मिले तो जुदा नहीं होता / सिया सचदेव
दिल मिले तो जुदा नहीं होता
दरमयां फ़ासला नहीं होता
एक दिन कब सुकून से गुज़रे
कब भला हादसा नहीं होता
होंके नाराज़ भी ये कहते हो
मैं किसी से खफ़ा नहीं होता
मुझसे कहते है क्यूँ परेशां हो
तुमसे वादा वफ़ा नहीं होता
खूं के आँसू न आज रोती मैं
तुझसे गर राब्ता नहीं होता
सिर्फ ख़ामोशियाँ ही बेहतर है
मुझसे शिकवा गिला नहीं होता
मैं तो वाक़िफ़ हूँ आपसे लेकिन
आप को कुछ पता नहीं होता
ख़्वाब तो सिर्फ इक छलावा है
सच से कुछ वास्ता नहीं होता
ज़िंदगी राह चुन तो लूँ अपनी
हाँ मगर हौसला नहीं होता
अश्क़ पलकों पे झिलमिलाते हैं
दर्द दिल से जुदा नहीं होता
नेकिया करके डाल दरियाँ में
नेकियों का सिला नहीं होता
सारी दुनिया पे तंज करते हो
सामने आईना नहीं होता
यूँहीं औरों से जो उलझते हैं
उनका कुछ भी भला नहीं होता
कैसे खुशियों की जानते क़ीमत
दुःख से जो सामना नहीं होता
कोई रिश्ता भी इस ज़माने में
माँ से बढ़ कर बड़ा नहीं होता