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दिल में अंगार जले / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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मेघ बजे
हवा चले
दिल में अंगार जले
धनुष-गगन
बूँद-तीर
मन्मथ तन रहा चीर
मन होता है अधीर
पोर-पोर बढ़े पीर
सन-सन पछियाँव बहे
विरही मन आज दहे
ज्यों सूरज गले मिले
अमवा झुक झूम-झूम
महुआ मुख रहा चूम
भीग रहे उभय गात
पुलकित हैं पात-पात
झर-झर-झर प्रेम झरे
चरर-मरर जिया करे
देख-देख बाँस जले
जवाँ हुये नदी नार
मिट्टी से मची रार
कट-कट गिरता कगार
बंधन सब गये हार
धारा से मिली धार
दरिया ने किया प्यार
जात-पाँत हाथ मले