भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल में उसके थी एक अजब हलचल / बाबू महेश नारायण
Kavita Kosh से
दिल में उसके थी एक अजब हलचल
आत्मा थी फ़ड़कती औ बेकल
धीरता भी बनाती थी चंचल,
व्यग्रता आंख में थी लाती जल
प्रीत जब रोते रोते थक जाती,
वालों को वह खसोट झुंझलाती,
तब घृना से बदन को वह लखती
तब जनूं सी वह दस्त को मलती,
आख़िरश होके सबसे वह मग़लूव
खोल देती वह द्वार दिल को खूब-
"मेरे प्यारे
अरे आरे।"