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दिल में उसके थी एक अजब हलचल / बाबू महेश नारायण

दिल में उसके थी एक अजब हलचल
आत्मा थी फ़ड़कती औ बेकल
धीरता भी बनाती थी चंचल,
व्यग्रता आंख में थी लाती जल
प्रीत जब रोते रोते थक जाती,
वालों को वह खसोट झुंझलाती,
तब घृना से बदन को वह लखती
तब जनूं सी वह दस्त को मलती,
आख़िरश होके सबसे वह मग़लूव
खोल देती वह द्वार दिल को खूब-
"मेरे प्यारे
अरे आरे।"