Last modified on 9 मार्च 2013, at 17:08

दिल में जब इश्क़- ने तासीर किया / वली दक्कनी

दिल में जब इश्‍क़ ने तासीर किया
फ़र्द-ए-बातिल ख़त-ए-तदबीर किया

बंद करने दिल-ए-वहशतज़दा कूँ
दाम ज़‍ह ज़ुल्‍फ़-ए-गिरहगीर किया

मौज-ए-रफ्त़ार ने तुझ क़द की सनम
सर्व-ए-आज़ाद कूँ ज़ंजीर किया

सब्‍ज़ बख्‍त़ों में उसे लिखते हैं
वस्‍फ़ तुझ ख़त के जो तहरीर दिया

जुज़ अलम उसकूँ न होवे हासिल
इश्‍क़-ए-बेपीर कूँ जो पीर किया

शम्‍अ मानिंद जली उसकी ज़बाँ
जिनने मुझ सोज़ की तक़रीर किया

गिर्य:-ओ-गर्द-ए-मलामत 'सूँ 'वली'
ख़ाना-ए-इश्‍क़ कूँ तामीर किया