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दिल में तुमको बसा के देख लिया / शुचि 'भवि'
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दिल में तुमको बसा के देख लिया
सच को भी आज़मा के देख लिया
राज़ कितने दिलों में दफ़्न हुए
थोड़े हमने छुपा के देख लिया
नाज़ भारत पे कुछ किया होता
लब पे नारे सजा के देख लिया
देखते तो कभी हंसा के उसे
सबने माँ को रुला के देख लिया
जंगलों में भी ‘भवि’ कहाँ पंछी
आग में सब जला के देख लिया