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दिल में तुम हो नज़्अ का हंगाम है / जिगर मुरादाबादी
Kavita Kosh से
दिल में तुम हो नज़अ<ref>चन्द्रा, जाँकनी </ref> का हंगाम<ref>समय </ref> है
कुछ सहर<ref>सुबह
</ref> का वक़्त है कुछ शाम है
इश्क़ ही ख़ुद इश्क़ का इनआम है
वाह क्या आग़ाज़<ref>प्रारम्भ</ref> क्या अंजाम है
दर्द-ओ-ग़म दिल की तबीयत बन चुके
अब यहाँ आराम ही आराम है
पी रहा हूँ आँखों-आँखों में शराब
अब न शीशा है न कोई जाम है
इश्क़ ही ख़ुद इश्क़ का इनाम है
वाह क्या आग़ाज़ क्या अंजाम है
पीने वाले एक ही दो हों तो हों
मुफ़्त सारा मैकदा बदनाम है
शब्दार्थ
<references/>