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दिल में तो रहा सहरा आँखों से बहा सावन / शोभना 'श्याम'
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दिल में तो रहा सहरा आँखों से बहा सावन
उम्मीद पर पहरा था ख़्वाबों में मिला सावन।
जीवन के झमेलों में दम तोड़ गयी हसरत
भीगे भी नहीं हम तो लो बीत गया सावन।
ये पाँव मुसाफिर है इन धूप के रस्तों पर
दो चार क़दम मेरे बस संग चला सावन।
जब ज़िक्रे वफ़ापनी वह करने लगे हमसे
कर याद सितम उनके क्या ख़ूब हंसा सावन।
तन्हाई के जंगल में इक याद सुलगती है
जलती हुई आँखों में दिन रात चुभा सावन।
डूबी थी धरती में कुछ बीजों की साँसें
जीवन की डोरी से फिर जोड़ गया सावन।
अटका था देहरी पर इक रिश्ता बरसों से
हाथ पकड़ आँगन में कल छोड़ गया सावन।
वो चूम गए फंदे तब हमको मिला सावन
बलिदानों का हमने पर बेच दिया सावन।
मदमस्त हवाओं ने जब वंशी बजाई तो
पत्तों पर ताशे-सा क्या ख़ूब बजा सावन।