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दिल में वफ़ा है आँखों में बेगानगी भी है / शैलेश ज़ैदी

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दिल में वफ़ा है आँखों में बेगानगी भी है।
यादें संजोये बैठे हैं और बेरुखी भी है।।

संकल्प कर चुके हैं न मुझसे मिलेंगे वो।
संकल्प तोड़ने की मगर बेकली भी है।।

करते हैं मेरे चित्र के टुकड़े भी क्रोध में।
होंठों पे गुनगुनाती मेरी शायरी भी है।।

रहती हैं मुझसे उनको हमेशा शिकायतें।
लेकिन मेरे दुखों से उन्हें खलबली भी है।।

महसूस कर रहा हूँ मैं उनकी अदाओं से।
इस दुश्मनी के पीछे कहीं दोस्ती भी है।।

क्यों डर गए पहाडों की ऊँचाइयों से आप।
इन पर्वतों के बीच में बहती नदी भी है।।