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दिल में वही सुझाव वही मत लिए हुए / पुरुषोत्तम प्रतीक

दिल में वही सुझाव वही मत लिए हुए
आए तमाम यार शिकायत लिए हुए

मिलती कभी ज़रूर हमें ज़िन्दगी मगर
थे रास्ते तमाम अदावत लिए हुए

हमने किया सवाल किसे ज़िन्दगी कहें
पाया वही जवाब हिदायत लिए हुए

नाराज़ लोगबाग़ रहे देखकर यही
हम पर बहार और क़यामत लिए हुए

किसने अमीर ख़्वाब दिखाए ग़रीब को
हर बार बेशुमार शरारत लिए हुए

सब ठीक-ठाक लोग लगे ख़ुशमिज़ाज़-से
लेकिन बहुत महीन हिक़ारत लिए हुए

चाकू-छुरे प्रधान हुए घूम रहे हैं
बैठे रहो ’प्रतीक’ शराफ़त लिए हुए