भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल में वही सुझाव वही मत लिए हुए / पुरुषोत्तम प्रतीक
Kavita Kosh से
दिल में वही सुझाव वही मत लिए हुए
आए तमाम यार शिकायत लिए हुए
मिलती कभी ज़रूर हमें ज़िन्दगी मगर
थे रास्ते तमाम अदावत लिए हुए
हमने किया सवाल किसे ज़िन्दगी कहें
पाया वही जवाब हिदायत लिए हुए
नाराज़ लोगबाग़ रहे देखकर यही
हम पर बहार और क़यामत लिए हुए
किसने अमीर ख़्वाब दिखाए ग़रीब को
हर बार बेशुमार शरारत लिए हुए
सब ठीक-ठाक लोग लगे ख़ुशमिज़ाज़-से
लेकिन बहुत महीन हिक़ारत लिए हुए
चाकू-छुरे प्रधान हुए घूम रहे हैं
बैठे रहो ’प्रतीक’ शराफ़त लिए हुए