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दिल में हो रंजिश अगर तो / अनुलता राज नायर
Kavita Kosh से
दिल में हो रंजिश अगर तो
दूरियां बढ़ जाती हैं,
कैसे थामे हाथ उनके
मुट्ठियाँ कस जाती हैं...
हो खलिश बाकी कोई तो
कुछ न बाकी फिर रहा,
एक तिनके की चुभन भी
आँख नम कर जाती है...
तेरे कूचे से जो लौटे
दस्तक दोबारा दी नहीं,
गर उठायें फिर कदम तो
बेड़ियाँ डल जाती हैं...
चोट खायी एक दफा तो
ज़ख्म फिर भरते नहीं
वक्त कितना भी गुज़रता
इक कसक रह जाती है...
हों जुदा हम तुमसे या के
राहें तुम ही मोड़ लो,
टूटे जो रिश्ते अगर तो,
चाहतें मर जातीं हैं...