भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल मेरा आज भी जवाँ कुछ है / गोविन्द राकेश
Kavita Kosh से
दिल मेरा आज भी जवाँ कुछ है
चाहतों का तभी निशाँ कुछ है
पाँव घरती पर हैं टिके जिसके
वो ही जाने कि आसमाँ कुछ है
आग शायद लगे यहाँ पर भी
दिख रहा सामने धुआँ कुछ है
कोशिशें की गयीं बहुत लेकिन
दिल बहलता कहाँ यहाँ कुछ है
झूमने लग गये सभी अब तो
आज बेहतर ज़रा समाँ कुछ है