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दिल मे अरमान मेरे इतने मचलते क्यूँ हैं / रंजना वर्मा

दिल मे अरमान मेरे इतने मचलते क्यूँ हैं
ख़्वाब देखूँ जो ज़माने को वो खलते क्यूँ हैं

करके वादा है मुकर जाना शग़ल लोगों का
जो कही बात वही पल में बदलते क्यूँ हैं

काम फूलों का है खिल खिल के लुटाना खुशबू
लोग कलियों को बिना बात कुचलते क्यूँ हैं

अपनी औकात समझ ले जो वो ऊपर जाये
चढ़ के ऊँचाई पे बेवक्त फिसलते क्यूँ है

सख़्त होने हैं लगे अपनी तमन्ना की शज़र
आग उल्फ़त की जो लग जाये तो जलते क्यूँ हैं

पर्वतों के सभी झरने नहीं बनते दरिया
संग फिर बर्फ़ की मानिंद पिघलते क्यूँ हैं

सर्द हो जाती निगाहें हैं कलेजा पत्थर
जाने ये अश्क़ भी आँखों से निकलते क्यूँ हैं