भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल लगाने की भूल थे पहले / सूर्यभानु गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल लगाने की भूल थे पहले
अब जो पत्थर हैं फूल थे पहले
 
तुझसे मिलकर हुए हैं पुरमानी
चाँद तारे फिजूल थे पहले
 
अन्नदाता हैं अब गुलाबों के
जितने सूखे बबूल थे पहले
 
लोग गिरते नहीं थे नज़रों से
इश्क के कुछ उसूल थे पहले

जिनके नामों पे आज रस्ते हैं
वे ही रस्तों की धूल थे पहले